ना मिलने की खूशी थी ,ना बिछड जाने का डर Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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ना मिलने की खूशी थी ,ना बिछड जाने का डर Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
ना मिलने की खूशी थी
ना बिछड जाने का डर
फिर भी हमारे रिश्तो की
गहेराइ कभी ना हुवी कम
ना बिछड जाने का डर
फिर भी हमारे रिश्तो की
गहेराइ कभी ना हुवी कम
ना उन की ख्वाहिशे थी
ना थी हमारी कुछ उम्मीदे
बिछडने के बाद फीर भी
मिलते रहेते थे अकसर हम
ना वो कुछ बोलते थे
ना हम कुछ पुछते थे
आंखो से हाल पुछ लेते थे
मुलाकाते हो जाती थी खतम
मुलाकाते हो जाती थी खतम
उस ने कभी गमो से दूर
रखनेकी खाइ थी कसम
कभी मे उन का अक्स था
अब अंधेरे मे मिलते है हम
रखनेकी खाइ थी कसम
कभी मे उन का अक्स था
अब अंधेरे मे मिलते है हम
इसे ना इश्क कहेते हे
इसे ना दोस्ती कहेते है
फीर भी लोगो को लगता है
हम निभा रहे है कुछ रसम
इसे ना दोस्ती कहेते है
फीर भी लोगो को लगता है
हम निभा रहे है कुछ रसम
ताल्लुक कभी ना बोज था
ना मुजे उस का गुमान था
फीर भी किस्से बनते जाते है
कुछ बाते लोगो को नही होती हजम
ना मुजे उस का गुमान था
फीर भी किस्से बनते जाते है
कुछ बाते लोगो को नही होती हजम
उन के घर तक कभी गया नही
उस ने मेरा घर कभी देखा नही
कयोकी उन के शहर से मेरे
शहर की दूरी कभी ना हुवी खतम
उस ने मेरा घर कभी देखा नही
कयोकी उन के शहर से मेरे
शहर की दूरी कभी ना हुवी खतम
(नरेश के.डॉडीया)
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Hindi Kavita
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