हमारी चाहतो के दोर को फिर से शुरू करनां पडेगां Muktak By Naresh K. Dodia
![]() |
हमारी चाहतो के दोर को फिर से शुरू करनां पडेगां Muktak By Naresh K. Dodia |
हमारी चाहतो के दोर को फिर से शुरू करनां पडेगां
जहां से हम मुडे थे वोही राहो पे तुझे चलनां पडेगां
नही रोतां है दीवारो से अब आशीक अपने सर पटक के
मे जितनां चाहुं उतनां ही तुम्हे चाहत मे बीखरनां पडेगां
- नरेश के.डॉडीया
Labels:
Muktak
No comments:
Post a comment