“नशीबनी बलिहारी” Gujarati Kavita By Naresh K. Dodia
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“नशीबनी बलिहारी” Gujarati Kavita By Naresh K. Dodia |
एक कलाकथी वधारे एकधारी वातोनो
अंत लावता एने कह्यु,”हवे हुं थाकी गइ छु,
तारी हथेळी मने आप,मारे एना पर
माथु राखीने थोडी वार माटे सुइ जवु छे..
हवे तारो मोबाइल,तारू लेपटॉपने
एक बाजु मुकी दे
एटले थोडी वार लंबावु..
अने ए मारी एक हथेळी पर माथु राखीने
मिनिटॉमा चीर निंद्रामां पोढी गइ..
अडधी कलाक,पोणी कलाक,एक कलाक
एक कलाकने विस मिनिट….
बराबर एक कलाकने बत्रीस मिनिट पछी
एनी आंखो खोली अने मारी सामे
चिरपरिचित स्मित फेकयु..अने कह्यु..
“हजु तुं आमने आम बेठो छे…?
आमने आम मारा माथा नीचे हथेळी राखीने?
हुं फकत हस्यो अने मे कह्यु के
तारी निंदरमां खलेल ना पडे एटले
आळस मरडीने मारी सामे बोली,
“साचे तुं मारू बहु ध्यान राखे छे..
पण ए तो कहे के,हु सुती हती त्यारे
लेपटोप,मोबाइल,वोटसएपस,फेसबुक,
विना तारो समय केम पसार थयो?
एनी सामे जोइने मे कह्यु,
तु सुती हती त्यारे तारी बंध आंखोमां
प्रेमनी तृप्तीना अहेसासनी कविता वांची. .
“अच्छा…बीजु शुं वांच्यु?
एक देवी जेवी आभा ज्यारे सुती होय त्यारे
तारा चहेरा पर उभरी आवे छे….
जेने जोइने कोइ पुरुषवृतिना उश्केराट विना
पावनकारी स्पर्शनी इच्छा धारण थाय
“अच्छा,तो मे तने क्या रोकयो हतो?”
शरारती अवाजमा पोताना वाळमां
रब्बरबेन्ड भरावता बोली..
मे कह्यु हा मे तने स्पर्श कर्यो हतो पण
तु उंघमा हती तने जाण नहोती थइ..
साच्चे..तु बहु छे.एम कहीने आंख मारी
मे कह्यु,तुं उंधमा हती त्यारे तारा वाळ
सरीने तारा चहेरा पर फेलाइ गया हता
ए वाळने तारा कान पाछळ धकेलीने
तारा चहेराने फरी द्रश्यमान बनाव्यो…
एने लांबु सांभळवानी इच्छा नहोती
एटले बोली ,”तारी कविता बंध कर अने
सीधी रीते कहे के तु शु अडपलु कर्यु?
कशु अडपलु नहोतु कर्यु…फकत मे तारा
भाल परनी वंकायेली रेखाओने चुमी
अने मारा मानभर्या स्थाननी प्रतितिनी
थइ…
“शु लख्यु हतु बोल ने यार!!”
कशु ज नही फकत लख्यु हतु
“नशीबनी बलिहारी”
पछी आंखोमां खूशीना झळझळीया आवता
आगळ कशु वांची ना शक्यो..
-नरेश के.डॉडीया
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Gujarati Kavita
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