कभी कभी तनहाइया सरेआम मेरे वजुद से लिपटती है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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कभी कभी तनहाइया सरेआम मेरे वजुद से लिपटती है Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
कभी कभी तनहाइया सरेआम मेरे वजुद से लिपटती है
जब तुम्हे सामने चाहु,एक खूश्बू गजल में सिमटती है
रबने तुजे मेरे लिये नही बनाया,
उस का कोइ किक्र नही
इस लिए चाहनेवालो की अर्ज
खुदा के पास अटकती है
मकसद जिंदगी का है तुजे चाहना,
कया खोना,कया पाना
चाहतो में अच्छे अच्छो कि नियत
बिच रास्ते भटकती है
जुदाइआ क्यां है सुफीबंदो के लिए,तेरे सजदे करता है
बंदा तेरे नाम से बंदीशे छेडे तो सारी फिझा महकती है
घोसंलो में परींदे की तरह
तेरी पनाह मे महेफुझ रहेता हुं
तेरी खातिरदारी मे मेरी
इंसानी जात परींदे सी चहकती है
हसरते और भी जवान होती है
तेरे लिबासो के रंगो जैसी
लिबास तुं कोइ भी पहेने
जिंदगी तेरी चाल सी मटकती है
कैसा दोर है,दिमाग में तेरे ख्यालो के सिवा कुछ नही है
पता है नरेन,महोतरमां की आंख़े भी बारबार छलकती है
- नरेश के.डॉडीया
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