जलती दोपहरी हो,ठंडी के दिन हो या,जालिम बरसात हो Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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जलती दोपहरी हो,ठंडी के दिन हो या,जालिम बरसात हो Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
जलती दोपहरी हो,ठंडी के दिन हो या,जालिम बरसात हो
नही ऐसा दिन,तुझे याद नही किया,ना ऐसी कोइ रात हो
समजो,फासलो की दुरी का डर मुझे अब सताता नही है
जब भी तुम्हे महेसुस किया,लगता है के तुंम आसपास हो
कभी कभी छु लेते हवाओ में कुछ अनजाने से अहेसास
मेरा जिक्र आया होगा,एसा लगता था के तुम उदास हो
रिश्तो का ये ताल्लुक ऐसे जुड गया है हमारा आप से
ना पाया है,ना खोया है,फिर भी लगता है तुम खास हो
चाहु या ना चाहु,तुम मुझे और में तुम्हे,कया फर्क होता?
लेकिन तुम्हे सोचता हुं तब लगता है तुम मेरे अहेसास हो
सदीयो से लोग इश्क के नाम से ताल्लुकात रखते आये है
चलो आज से कुछ नया करे,जैसे रिश्तो की नयी जात हो
वफादारी,इंतेजारी,रुठ जाना,मिन्नते करना,ये सब कया है
जब भी मिलो,लगता है हमारे भी कुछ नये जझबात हो
महोतरमां हमारे रिश्तो की उंचाइ आसमान को छु गइ है
चलो चरागो को बुजा देते है,जहां हवा उन के खिलाफ हो
ना आये हमारे बिच कोइ एसी मुलाकाते जो दरारे बना दे
जवाब हमे ऐसा मिल जाये,उस पे फिर कोइ सवालात हो
नरेन,कयां आलादरज्जे की नजाकत आ गइ है गजलो मे!
लगता है गजले नही,महोतरमां कि रानाइ की सौगात हो
- नरेश के.डॉडीया
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