कवोलिटी टाइम Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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कवोलिटी टाइम Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
कवोलिटी टाइम
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हम दोनो अकसर मिलते है
लेकिन जब मिलते है तब
एक तरफ प्यासी नदी होती है
दुसरी तरफ राह तक रहां समंदर होतां है
वो मेरे बाहो के किनारे तक पहोचे उस से
पहेले ही समंदर की लहेरो की तरह आगे बढ़ के उसको बाहो में निगल लेता हूँ
फिर कुछ घंटे हम दोनो की घुलमिलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं
आखिर में दो थके हारे दो लोग ऐक दुसरे से दूर बैठकर जिस्म को भूलकर अपनी रूह को मिलाते हैं
घडी की सुई को भूलकर कितने घंटे तक दोनों की रूह एक दूसरे से लिपटी रहेती है
जिस मे थकान के बदले इक दूसरे के चेहरे पे मुश्कान की ताजगी ऊभर आती है
यही तो फर्क है नदी , समंदर और इंसानी औरत और आदमी के मिलनमे
कंयु की एक आदमी औरत से बहुत कुछ सीखता हैं, लेकिन समंदर अपनी जगह अडा रहेता है
जिस को कवोलिटी टाइम कहते है
शायद उसे रुह के मिलने पे ही संभव होता है
जो इंसान के पास है
नदी और समंदर के पास नहीं है
-नरेश के.डोडीया
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