किताबो की तरह वो अकसर मुझे मिलती थी Hindi Kavita By Naresh K. Dodia
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किताबो की तरह वो अकसर मुझे मिलती थी Hindi Kavita By Naresh K. Dodia |
एक अच्छी और खूबसूरत कवर वाली
किताबो की तरह वो अकसर मुझे मिलती थी
में उसे पढतां थां,उस के अच्छे कवर को देखतां था
पूरी पढने की कइ बार मैने कोशिश की मगर
कभी आधी पढी,कभी थोडी पढी लेकिन
उस में क्यां लिक्खा है उसको समजने में हर बार
नाकाम रहा.
लेकिन जितनी बार उस को पढा मुझको
आंख से लेकर रुह तक शुकुन मिलतां था
फिर क्यां हुआ!
एक दिन में जिसकी किताब थी
उसे मैने वापीस कर दी..
वो बात और है के उसने अपनी धर केी
रेक को सजाने के लिए इतनी अच्छी और
खूबसूरत कवरवाली किताब बसाइ थी..
जिस को पढने की उसने कभी कोशिश नही की
और मैने कई बार पढी और हर बार पूरी समजने मे
नाकाम रहा
- नरेश के.डॉडीया
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Hindi Kavita
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