कुछ हिंदी शेर - By Naresh K. Dodia
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कुछ हिंदी शेर - By Naresh K. Dodia |
ऐक लम्हा कांच के माफिक तूटा था
फिर तुं टुकड़ों की तरह मुझको मिला था
शाम होते ही परींदे लौट आते है अपने धर
याद में तेरी कभी धर जाने से गाफिल होतां हूँ
कोइ तुझ सा जब मुझे मिलता नही हैं वो आलम में
फिर मैं अपने आप की खिदमत में इक महफिल होतां हूं
तुम्हें गैरो की नजरों से यहाँ बचके निकलना है
किसी शायर की माशूका होने का ऐक रुतबा है
क ही तस्वीरने बदनाम मुझको कर दिया
जो तुम्हारे साथ मैने खीचवाई थी कभी
एक बंजारे की आंखों में कहानी है
दिल में तेरे आखरी मंजिल बसानी हैं
जब भी यहा पे जिक्र तेरा होता है
पहले की माफिक दिल मिरा दूखतां नही
तुझे हम कागजों के फूल देना चाहते हैं
मिरे हालात कैसे हैं ये कहेना चाहते हैं
किसी भी वक्त तुंमको मिलने आउंगां कहीं भी
तुम्हारे हाथ से छूंटा हुआं लम्हा नहीं हूं
तुम्हारे साथ कुछ पल इस लिए मुझको बिताने है
हमारे दिल के अंदर खाली गलियारे दिखाने है
- नरेश के. डोडीया
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sher
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