वक्त रहते जख्म गहरा हो मगर भर जाता है Hindi Muktak By Naresh K. Dodia
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वक्त रहते जख्म गहरा हो मगर भर जाता है Hindi Muktak By Naresh K. Dodia |
वक्त रहते जख्म गहरा हो मगर भर जाता है
आदमी है वो तो अपने आप संभल जाता है
तुम छुपाना लाख चाहो इश्क़ सर चडके बोले
नाम मेरा होठ पे आते ही दिल डर जाता है
- नरेश के. डोडीया
Labels:
Muktak
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